शिकार पुराना शगल है। वैसे अभी भी नवाबों के खानदान वाले (सैफ, नवाब पटौदी) शिकार के बुखार से यदाकदा पीड़ित हो जाते हैं। एक अकेला आदमी जंगल में जाकर शिकार नहीं करता । इसके लिए अमला लगता है। ठीक इसी तरह चुनाव होता है। मेरे कहने की तात्पर्य यह है कि चुनाव ठीक शिकार की तर्ज पर लड़ा जाता है। चुनाव भी एक अकेला नहीं लड़ता । इसके लिए समर्थकों की ज़रूरत होती है। जैसे पहले शिकार करने की ट्रेनिंग लेना पड़ता है उसके गूुर सीखना होता है। ठीक इसी तरह चुनाव जीतने के फार्मूले जानना ज़रूरी होता है। शिकारी अपने पिता से या कभी -कभी अन्य किसी मित्र या संबंधी से इसे सीखता है। चुनाव का उम्मीदवार भी कभी अपने पिता और कभी किसी अन्य से इसकी ट्रेनिंग लेता है। याने यह ट्रेनिंग कभी - कभी वंशानुगत और कभी - कभी वातावरण से ली जाती है। शिकारी का बेटा अपने घर में ऐसे ही वातावरण में पलता है बढ़ता है। नेता का बेटा भी बचपन से नेतागिरी के गुण (गुर) घर में धीरे - धीरे कर अपने पिता, चाचा, दादा इत्यादि से सीखता है।
जैसे शिकार के लिए निशाना साधना आना एकदम ज़रूरी है। इसी प्रकार नेतागिरी में वोटर को सूंधना उसे भलीभांति जानना ज़रूरी होता है। वैसे निशाना तो फौजी या निशानेबाजीं के खिलाड़ी भी लगाते है। जैसे (अभिनव बिंद्रा) पर शिकारी केवल निशाना ही नहीं बल्कि घात लगाना भी सीखता है और यह उसके लिए बेहद ज़रूरी भी होता है। ऐसे ही नेतागिरी सीखने वाले को मतदाता को काबू में करने की कला (घात लगाने की क्रिया) सीखना पड़ता है। मतदाता किस धर्म या जाति का है उसकी रूचियाँ क्या हैं उसकी जरूरतें, कमज़ोरियाँ क्या हैं आदि की जानकारी इकठ्ठा करना होती है। शिकारी भी जानवर की गतिविधियों को देखता परखता है। शिकार कहाँ - कहाँ जाता है। किस जंगल में रहता है कहाँ पानी पीता है इत्यादि की जानकारी होने पर ही शिकार कर पाना उसके लिए संभव होता है। निशानेबाज़ी सीखने वाले खिलाड़ी और शिकारी में अंतर है। निशानेबाज़ी का खिलाड़ी एक लक्ष्य सामने रखकर निशाना साधता है उसे लक्ष्य के बारे में जानने का विशेष प्रयास नहीं करना पड़ता । निशानेबाज़ और शिकारी में वहीं अंतर होता है जो धतूरे के फूल और किसी अन्य साधारण फूल में होता है। वैसे फूल तो दोनों ही होते हैं पर इनकी तासीर में भारी अंतर होता है। नेता मतदाता के बारे में पूरी जानकारी इकठ्ठी करने के बाद ही अपना चुनाव क्षेत्र चुनता है।
शिकारी मचान बनाना, हांके के लिए जरूरी सामान, हांके वाले, मशाल, बंदूक इत्यादि की जानकारी ही नहीं बल्कि इन्हें कैसे इकठ्ठा किया जाय सीखता है। नेता भी पोस्टर, बैनर, कटआउट बनाना, लगाना, जुलूस, सभाओं का आयोजन, मंच बनाना, लाउडस्पीकर, भाषण, नारे लिखने वाले, नारे चिल्लाने वाले बच्चे इत्यादि का इंतजाम करता है और किसी पढ़े लिखे के निर्देशन में पर्चा (उम्मीदवारी का) भरता क्योंकि वह कानून नहीं जानता । उसे ठीक से पर्चा भरना नहीं आता ऐसी हालत में पर्चे के खारिज होने का खतरा रहता है अगर पर्चा खारिज हो गया तो सब धरा का धरा रह जायेगा। इन सबके लिए धन की व्यवस्था करना एक राज का विषय है अब सभी कुछ तो बताना जरूरी नहीं है बस सब देखो और समझो पर छोड़ना पड़ता है। नेता ठीक शिकारी के समान अपने चुनाव क्षेत्र को चुनता है जैसे शिकारी शिकार के लिए जंगल का चुनाव करता है।
शिकारी और नेता अपने 'शिकार' से उसी समय तक सजग व सतर्क रहते हैं जब तक वे शिकार नहीं कर लेते याने शिकारी जब तक जानवर मार नहीं लेता और नेता चुनाव नहीं जीत लेता । उसके बाद तो दोनों की पौबारा शिकारी शिकार का मांस खाता है खिलाता है उसके चमड़े व चर्बी को बेचता है। नेता अपने वोटर को अब ख़ास नहीं आम आदमी याने अदना कमजोर प्राणी समझने लगता है। मतदाता चुनाव के पहले तक ख़ास बाद में आम आदमी में बदल जाता है। आम बड़े मजे का फल है इसका रस पियो, गुठली बेचो, आम पापड़ बनाओ और अंत में फिर से गुठली बों दो और फिर अगली फसल के फायदे काटो आम आदमी भी चुनाव के बाद 'आम' हो जाता है। इसी प्रकार उसे चूसा, बोया और बेचा और बोया जाता है।
बस शिकार और मतदाता में एक बड़ा फर्क है। शिकार तो गोली खाकर मर जाता है पर मतदाता वोट देकर केवल निस्तेज हो जाता है। पर उसके फिर से शक्ति ग्रहण करने की संभावना पूरी तरह समाप्त नहीं होती। जनशक्ति कभी खत्म नहीं होती। भूखा बेबस शक्तिहीन आदमी कभी भी किसी क्रांति का जन्मदाता बन सकता है। इतिहास कहता है घुसे पेट, निकली हुई ऑंखों वाले कंकाल सदृष्य मानव ढांचो से ही क्रांति का जन्म होता है।
नेताओं उस समय तक तुम राजनीति की उस नदी पर पुल बनाते रहो जिसका कोई अस्तित्व नहीं है पर जिस दिन जन जागेगा तुम्हें बचने को जगह नहीं मिलेगी।
श्रीमती आशा श्रीवास्तव
आर.डी.ए. कॉलोनी
टिकरापारा, रायपुर
प्लाट नं. : 45
फोन नं. : 0771-2273934
मो.नं. : 094076-24988
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आशा जी,
ReplyDeleteआपने अच्छा व्यंग्य लिखा है, मुझे लगता है कि अंतिम दो पैरा वाकई में इस व्यंग्य की जान हैं...
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका स्वागत है।
ReplyDeleteअच्छा ब्लोग है।आशा है इसी सुन्दर रचनाएं पढ़्ने को मिलती रहेगी।
जरुर पढें दिशाएं पर क्लिक करें ।
मै आज बैठे-बैठे चिट्ठे की प्रविष्टियाँ कड़ीयो को देख रहा था, तभी मेरी नजर आपके ब्लोग पर पडी। देखकर प्रसन्ता हुई।
ReplyDeleteआपकि लेखनी आम लोगो कि विचारो से करीब है इस बात से मै प्रभावित हु। आशा करता हु कि आप आगे भी लिखती रहेगी। मेरे लिखने मे शब्दो मे अभिवादन मे कही कोई त्रुटि हुई हो तो मै आपसे सविनय क्षमा चाहता हु। एवम आपके स्वस्थ्य प्रसन्ता कि कामना करता हु। समय समय पर आपके विचारो कि अपेक्षा रखता हु।
हार्दिक मगलकामनओ सहीत
बस शिकार और मतदाता में एक बड़ा फर्क है। शिकार तो गोली खाकर मर जाता है पर मतदाता वोट देकर केवल निस्तेज हो जाता है।
ReplyDelete........aapne to is aalekh men saari baate badi sateek kahin hain...apan to is baat par aapke samarthak hue bhayi...
नेता, व्याधा खोजते हरदम यहाँ शिकार।
ReplyDeleteअगर सफलता नहीं मिले हो जाते खूँखार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
हिन्दी ब्लॉगजगत परिवार में इस नये ब्लॉग का हार्दिक स्वागत है.आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए,प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.
ReplyDeleteशुभकामनाएं !!!!!
प्रवीण त्रिवेदी / PRAVEEN TRIVEDI
प्राइमरी का मास्टर
Good Job. Bahut hi achchha vyang he. Badhai
ReplyDeleteNaren Shrivastava
हिन्दी चिठ्ठा विश्व में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें… शुभकामनायें…
ReplyDeleteयथार्थ को कलम से उकेरता हुआ आलेख बहुत सटीक तुलना की है आपने साधुवाद स्वीकारें आपका स्वागत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पधारे
ReplyDeleteI have seen this blog for the first time, and really feel something new in this blog...With best wishes...Dani Shashi Kant, Kankalipara, Navbharat chowk,Opposite Agrawal Commerce classes..Raipur, contact no.9406236251
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