Friday, December 5, 2008

शादीयाफ्ता इश्‍क की दास्‍तां

‘शादीयाफ्ता’ शब्‍द सुनते ही सजायाफ्ता शब्‍द दिमाग का दरवाजा खटखटाने लगता है। शादी के बारे में आमराय तो यही है कि यह वो बला है जिसका काटा उफ् तक नहीं करता। शादी के आपनी ही पत्‍नी से इश्‍क की कोई दास्‍तां भी हो सकती है कहने वाला कोई सिरफिरा ही हो सकता है यह एक स्‍थापित सत्‍य सा है। कोई भी यह सुनने वाला झट से कह देगा शादी के बाद दासता तो देखी है पर इश्‍क की दास्‍तां न सुनी न देखी है। शादी के बाद इश्‍क शेष ही कब रहता है अगर कुछ रहता है तो वह इश्‍क कर अवशेष होता है।
पर मैं यह बात दावे के साथ पूरे होशोहवास में, दुरूस्‍त दिमागी हालत में, कह रही हूं। कलमकार की शंकर की तरह तीसरी आंख जो होती है। वह दिखने वाली वस्‍तु के अंदर का भी देख लेता है। वर्डसवर्थ इसे “इनवर्ड आई” कहते थे। मेरी तीसरी आंख ने अपने देश के एक बहुचर्चित नेता में प्रेमी शहंशाह शाहजहां की झलक देखी है। बल्कि मेरा तो मानना है वह शाहज‍हां से भी ऊँचे दर्जे का प्रेमी कहा जा सकता है।
याद रखिए आप मेरी तीसरी आंख से देख रहे हैं और आपके भी लालू प्रसाद भ्रष्‍टाचार शिरोमणि चारा घोटाला कांड कार्ता नहीं बल्कि एक महान प्रेमी दिखाई दे रहे है। हमने यह देखने की कोशशि ही नहीं कि वे शहंशाह शाहजहां जैसी प्रेमी का दिल रखते है। शाहजहां ने मुमताज के लिए ताजमहल बनवा दिया। मुमताज मलिका थीं हिन्‍दुस्‍तान की साथ ही बेहद सुंदर याने सारे वाजिब कारण थे शहंशाह के पास उनसे प्रेम करने के जबकि लालू एक साधारण आदमी से ऊपर, उनकी पत्‍नी प्रेमिका भी एक अत्‍यंत साधारण अनपढ़ महिला को उन्‍होनें सत्‍ता सिंहासन पर बैठा दिया। मुमताज तो बेचारी मरकर ताज में दफनाई गई जबकि जीवित राबड़ी देवी सत्‍तासीन हो गई। लालू ने उन्‍हे गौशाला से उठाकर सीधे मुख्‍यमंत्री की गद्दी दिला दी। यहतथ्‍य स्‍वत: प्रमाणित करता हैं कि लालू का दिल एक सच्‍चे प्रेमी का दिल कहा जाना चाहिए और ऐसा उदाहरण पूरी सदी में अपने आप में अनूठा हैं। मैं जानती हूं मेरी इस बात पर बहुत से मेरे पीछे डंडा लेकर पड़ जायेंगे या हो सकता है मुझे आरजेडी का समर्थक कहने लगें पर हमें कभी दूसरे नजरिए से भी देखना चाहिए। नजरें बदलेंगी तो नजारे तक बदल सकतें हैं। मैं एक शादीशुदा जोड़े में इश्‍क के एक बेमिसाल उदाहरण के रूप में राबड़ी देवी का राजनीति प्रवेश उनके पति प्रेम के प्रतीक स्‍वरूप दर्शाना चाहती हूं।
फिल्‍मों में हीरो को, किशोरों द्वारा प्रेमिका को सरप्राइज बर्थडे पार्टी, कार बंगला इत्‍यादि देते देखा सुना है पर लालू ने राबड़ी को सरप्राइज सत्‍तासिहांसन दे डाला हो सकता है कि वे गेशाली में व्‍यस्‍त हो और अचानक उन्‍हें उनके अपनी पार्टी का नेता बनने की खबर मिली हो। कितनी चमत्‍कृत हुई होगी वे।
जिस तरह शाहजहां आगरे के किले मैं कैद खिड़की से ताजमहल निहारता रहता था उसी तर्ज पर लालू जेल में कैद राबड़ी देवी के मुख्‍यमंत्री बनने बनवाने में न केवल प्रयासरत रहे बल्कि सफल भी हो गए। ध्‍यान देने की बात है बादशाह होकर भी शाहजहां शाक्तिहीन से थे जबकि कैदी हालत में भी लालू इतने सशन्‍क थे कि उनका लोहा मानना पड़ेगा।
जब राबड़ी देवी का ब्‍याह हुआ होगा (मैं विश्‍वास के साथ कह सकती हूं कि उनका प्रेमविवाह कतई नहीं था) उन्‍होंने सोचा भी न होगा कि उनका पति पत्‍नी प्रेम में शाहजहां की बराबरी क्‍या उसे मात भी दे सकता हैं। राबड़ी देवी को देखकार हिन्‍दुस्‍तान की महिलाएं रश्‍क करती हैं। किसी भी पति ने इस देश में अपनी पत्‍नी को इतना बड़ा तोहफा नहीं दिया होगा। इस हिसाब से लालू को सर्वश्रेष्‍ठ पति का सम्‍मान दिया जाना चाहिए। देश में कितनी योग्‍य व गुणी महिलाएँ पड़ी हैं उनके पति उनके लिए क्‍या कर पाए ! इन महिलाएओं ने अपने आपको अपने गुणों के कारण स्‍थापित किया। कंप्‍यूटर वाली शकुन्‍तला देवी हैं। इन्‍हें जीवन में प्राप्रि उनके अपने बलबूते पर मिली। राबड़ी देवी में तो ऐसी कोई योग्‍यता या गुण भी नहीं है। अपने बलबूते तो वो छोटी से छोटी नौकरी भी पाने की क्षमता नहीं रखतीं। पर किस्‍मत तो देखिए ऐसी महिला अचानक सत्‍ता सिहांसन पा गई। अन्‍य महिलाएं तो पति से एक साड़ी एक गहने को क‍हते थक जाती हैं तब भी कभी उन्‍हें वह मिल पाता है और भी नहीं भी।शाहजहां की तुलना में लालू को इस हष्टि से भी श्रेष्‍ठ कहा जा सकता है कि जेल से छूटकर उन्‍होंने पत्‍नी के साथ वर्षों सत्‍तासुख भोगा वरना अक्‍सर प्रेमी नहर खोदते, तारे गिनते या जूलियट की गैलरी के चक्‍कर लगा का मर जाते हैं।
बादशाहों को तो सत्‍ता विरासत में मिल जाती है परन्‍तु प्रजातंत्र में सत्‍ता कोई जबरा ही चुनाव का दंगल जीत कर पाता है। इसे भ्रष्‍टाचार, जिसकी लाठी उसकी भैस जैसी कोई बात नहीं हैं। जिन हाथों को सत्‍ता संभालना है उनके हाथ मजबूत तो होना ही चाहिए! ब्‍याह के वक्‍त रबड़ी देवी यह कहॉ जानती थी कि अचानक उन्‍हें राजनीति में आना पड़ेगा सत्‍ता संभालना पड़ेगा। वो तो हक्‍की बक्‍की रह गई होंगी जब उन्‍हें मुख्‍यमंत्री की कुर्सी मिली होगी। यह सब ऐसी है जैसे किसी घुड़सवारी से अनजान व्‍यक्ति को घोड़े पर बैठा दिया जाय और उसे हुक्‍म मिले घोड़े को सरपर दौड़ाओ।
एक बार अपने आपको लालू की जगह रखकर सोचिए। आप जेल में बंद हैं और बाहर आपकी पार्टी अल्‍पमत में होने के कारण संकट में है। बाहर सियासती हमाम में चिल्‍लपों मची हैं। ऐसे में अपनी अति साधारण पत्‍नी को गोल कराने का दम रखना कितना मुश्किल है। आखिर सियासत का सही अर्थ सत्‍तापर पकड़ ही तो है। सियासत में गालिब का तू नहीं कोई और सही का फार्मूला नहीं चलता वहीं में नहीं तो मेरा बेटा बेटी या बीबी ही सही चलता है।
राबड़ी देवी को सतियों की श्रेणी में अवश्‍य रखना चाहिए। सीता की तरह पति के पीछे चलना, मंदोदरा की तरह पति को नेक सलाह देना आसान है पर राबड़ी देवी की तरह अचानक (पति की आज्ञा से) प्रशासन संभालना बेहद कठिन काम है परन्‍तु बिना उफ् तक किए उन्‍होंने ऐसा कर दिखाया और वह भी इस युग में जब जरा जरा से विचार में मतभेद होने पर महिलाएं तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने लगती हैं। वे अपनी पति भक्ति, पति को ही त्‍याग कर जताने को तत्‍पर दिखती हैं।
पति के पीछे चलना आसान है पर उसके आगे चलना और सारे खतरे और सारे वार झेलना सहज नहीं है। राबड़ी देवी ने यह दुश्‍कर कार्य कर दिखाया। उन्‍हें माडर्न सति घोषित किया जाना चाहिए सीता बेचारी को तो राम ने पति प्रेम में जंगलों की खाक छनवा दी, कंदमूल फल और काटों का उपहार दिया और राज्‍य प्राप्ति के पहले अग्नि परिक्षा दिलवायी और राजा बनते ही उन्‍हें फिर जंगलों में छुड़वा दिया। इस हिसाब से तो लालू ने राबड़ी को राजमहल के सुख, (मीडिया सुख विशेष उल्‍लेखनीय हैं) दिए।
अंग्रेजी में किसी ने कहा है सत्‍य काल्‍पनिकता से अजीब सी चीज है। यह लालू राबड़ी के शादीशुदा इश्‍क की दास्‍तां पर फिट बैठता है। - Asha Shrivastava

1 comment:

  1. accha likha hai...likhte rahiye.

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