Thursday, December 18, 2008

गुरू वंदना

हे सुधासिंधु हे ज्ञानपुंज,
तुम तभ को हरते हवन कूंड
है चित्र रहित मेरा मन पटल,
बन तू ही तूलिका रंग नवल
हे दिशा ज्ञान हे दीप पुँज ।

रवि जहाँ जाने से डरता,
तू निर्भीक वहीं पग धरता,
हे ब्रम्हरूप की एक बूंद ।

मेरी जरा थाम
अंगुली को,
मैं पगतल कर लूं धरती को,
हे कुरूक्षेत्र की अमर गूंज ॥

1 comment:

  1. jb sari duniya men guru ki ijjat ke sath akhilwad kiya ja rha hai us smy men yh guru vandana pada kr bahut hi achcha laga.

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