हे सुधासिंधु हे ज्ञानपुंज,
तुम तभ को हरते हवन कूंड
है चित्र रहित मेरा मन पटल,
बन तू ही तूलिका रंग नवल
हे दिशा ज्ञान हे दीप पुँज ।
रवि जहाँ जाने से डरता,
तू निर्भीक वहीं पग धरता,
हे ब्रम्हरूप की एक बूंद ।
मेरी जरा थाम
अंगुली को,
मैं पगतल कर लूं धरती को,
हे कुरूक्षेत्र की अमर गूंज ॥
Thursday, December 18, 2008
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jb sari duniya men guru ki ijjat ke sath akhilwad kiya ja rha hai us smy men yh guru vandana pada kr bahut hi achcha laga.
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