Friday, December 5, 2008

बाल नोच रे

मेरा नाम बाल नोच रे है। इसमें हैरत की कोई बात नहीं। व्यक्ति का नाम तो उसके माँ बाप रख देते हैं और दूसरा (निकनेम) पड़ोसी, पहचान वाला, या कभी-कभी दोस्त या दुष्मन रख देते हैं। दोस्त और दुष्मन एक ही श्रेणी में आते है क्योंकि दोस्त को दुष्मन और दुष्मन को दोस्त बनते देर नहीं लगती। सवाल जब फायदे का हो तो कोई भी पाला बदल लेता है। व्यक्ति का एक नाम मषहूर हो जाता है पर ऐसी उनके कार्यो के आधार पर होता है जैसे गाँधीजी को महात्मा, मदनमोहन मालरीय को महामना, शाहरूख को किंग, अमिताभ को बिग 'बी', के नाम से पुकारा जाता है। ठीक इसी तरह मेरा नाम बाल नोच रे मेरे कामों की वजह से पड़ गया। कुछ लोग मुझे महान कहे जाने वाले लोगों में शामिल करने लायक नहीं मानते, मुझे उनसे गिला नहीं में तो मानता हूँ ''अहं ब्रम्हास्सि'' फिलहाल तो यह नाम मुझसे इस तरह चिपक गया है जैसे अमर सिंह बीग ''बी'' से। इनकी तासिर ही चिकाऊ है आज कल यह कांग्रेस के फेविकाल की गिरफ्त में है। मैं भिड़ में अपनी पहचान खोना नहीं चाहता है भले ही लोग मुझे 'बाल नोचरे' कहें।

लोगों ने यह नाम यूंही नहीं दिया। इसके पीछे भी कारण है। दर्षनषास्त्र में परत: प्रमाण याने अप्रत्यक्ष प्रमाण और स्वत:(प्रत्यक्ष) प्रमाण का जिक्र मिलता है। लोगों ने मुझे बड़ी हस्तियों को इस कदर खिजयाते देखा है की वे अपने बाल नोचने की मानसिक स्थिति में पहुच गये इसलिए लोग मुझे बाल नोचरे के नाम से पुकारने लगे हैं। सच बात तो यह है कि प्रसिध्द (वो भी अपने गुणों के द्वारा) होने जैसी कोई खासियत मुझ में नहीं है और यह बात मैं खुद अच्छी तरह जानता हूँ इसलिए मैंने दूसरे रास्ते का रूख लिया। नाम कमाने के लिए बड़े भले काम करना पड़ता है जैसे समाज कल्याण इसके लिए दयानंद सरस्वती व्यक्ति व देष का उत्थान इसके लिए स्वामी ऐसा कोई गुण है नहीं अत: मैं ने सोचा नाम से जबकि बदनाम में चार। अब तो आप भी मुझसे सहमत होंगे कि नाम से बड़ा बदनाम होता है। नाम कमाने में नुकसान ही नुकसान है। इसके लिए समूची जिन्दगी हवन करना पड़ता है। उदाहरण के लिए सीता पुजीं भी तो धरती में समाने के बाद। उसके पहले तो वे जंगल-जंगल राजरानी होकर भी भटकती रहीं, उन्हें अग्निपरिक्षा देना पड़ा और राम के राजतिलक के बाद एक धोबी द्वारा लांछन लगाने पर बाकी का जीवन पुन: जंगल में काटना पड़ा वहीं उन्हें अपने बच्चे पालने पड़े। ऐसे नाम से मैं ने तो तौबा करली। इससे तो बदनाम हजारगुना भला। मुझे तो शोहरत पाने की खुजलाहट इतनी ज्यादा होती है कि रूकना मेरे लिए संभव नहीं। इस तरह यह सिध्द हो गया है कि बदनामी का मार्ग सर्वथा चुनने योग्य है। बदनाम होना है भी बड़ा सरल है। आप पड़ोसी की बाल्टी या लोटा ही चुरा लिजीए। आनन-फानन में आप दूर-दूर तक चोर के नाम से मषहूर हो जायेंगे। है न बदनाम होना सरल!

नामवाले प्रसिध्द लोगों के पक्ष में यह दनील दी जा सकती है कि लोग उन्हें बहुत प्यार व आदर करते हैं । मुझे लोग थोड़ा अलग तरह से आदर देते है॥ मुझसे बात करते समय एक प्रकार का भय उनके अंदर साफ झलकता है। मैं पहले प्रकार के लोगों की श्रेणी में नहीं आ सकता मगर मेरे पास एक और सषक्त दलील है। जब भी जहाँ भी गाँधी जी कर नाम लेते हैं गोड़से का जरूर जिक्र होता है। गाँधी जी ने जन्म भर एक धोती पहनी सर्दी गर्मी सही अ्रग्रेजों के गुस्से का षिकार कई बार बने तब प्रसिध्दी पाई पर गोड़से ने गाँधी जी पर तीन बार ठांय-ठांय गोली चलाई और उसने गाँधी जी के साथ चिपककर सीधे इतिहास में एंट्री ले ली। किसी ने कहा भी है ''बदनाम भी होंगे तो क्या नाम न होगा।''

अब मैं मुख्य बिंदु पर आता हूँ। 'बाल नोच रे' शब्द की पूरी व्याख्याता करता हूँ। बाल चहरे की सुन्दरता की शोभा होती है। ऐया कोई बिरला ही होगा जो सुन्दर बालों की कामना करता हैं। लोग बड़े चाव से अपने बाल सजाते, सवारते हैं उन पर ढेर सारा पैसा खर्चा करते है, फिल्मी हिरो तो बार-बार बालों पर हाथ फेर-फेर कर यह दर्षाते हैं 'देखो मेरे बाल कितने सुन्दर हैं'। ब्यूटी पार्लर और हेयर कटिंग सेलून तो आदमी की इस चाहत की दोहन स्थली है। यह सोचने वाली बात है कि जब आदमी अपने बालों को इतना चाहता है तो वह उन्हें नोचने को तैयार कैसे हो जाता है ? इस प्रष्न का पूछा जाना स्वाभाविक है। मैं इसे समझता हूँ।

केषकर्तनालय की तर्ज पर मैंने बाल नोचनालय ट्रेनिंग सेंटर खोला है ऐसा मुझे इसलिए करना पड़ा क्योंकि कोई भी अपने बाल नोचवाने अपनी मर्जी से तो यहाँ आने से रहा और अगर मुझे आपनी दुकान चलाना है तो मुझे अपनी दुकान चलाने के लिए पहले उपयुक्त विद्यार्थी ढूँढंने पड़ेंगे। बेकारी के दिनचल रहे है देष की जवानी घोर असंतुष्टी के दौर से गुजर रही है ऐसे में मुझे अपनी पसंद के विद्यार्थी ढूँढंने में बेहद मदद मिली। मैंने ऐसे मुसटंडे टाइप के लड़कों को अपने ट्रेनिंग सेंटर में भर्ती कर लिया जिन्हें देखकर अगला झटका जरूर खा जाता है। दूसरे स्टेप में मैंने उन्हें आदमी को अपने बाल नोचने पर मजबूर करने के नुस्खे बताना शुरू किया। मैं अपने आसपास के माहौल, राजनेताओं, उनकी राजनैतिक चालों, फिल्मी हस्तीयाँ, अन्य धर्मो की परंपराएँ, नए-नए अस्तित्व में आए उत्सवों पर अपनी तीखी दृष्टि डालना शुरू जारी रखा और बड़े प्रभावषाली लोगों के बयानों को पहले बाल की खाल निकालना और फिर उन्हें काट कतरकर बयान देने वाले को अपने बाल नोचने तक परेषान करने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल करने का विषेषज्ञ की तरह अध्ययन करना अपना मुख्य काम बना लिया। इसके बाद उसे अपने विद्यार्थीयों को बकायदा सिखाने लगा। कहीं भी किसी बयान, किसी मुद्दे, किसी घटना को दुर्बीन से घूरकर बारीक से बारीक छेद को ढूँढने और फिर उसमें घुसकर उसे चीरफाड़कर उसका वस्त्रहरण करने के गुर मैं अपने पट्ठों को सिखाता। इसके लिए शक्ति प्रदर्शन अति आवष्यक होता है जिसके लिए मेरे मुसटंडे विद्यार्थी लाठी डंडे से लैस हमेशा तैयार रहते। मेरे रंगढंग देखकर लोग सकते में रहेंगे और मुझसे भय खाते रहेंगे। यही तो मैं चाहता हूँ। भय कोई खाद्य पदार्थ नहीं है पर फिर भी खाया जाता है जैसे गम खाया जाता है आंसू पिए जाते हैं। मुझे इतनी ही जानकारी है। बाल नोचने की कला की प्रयोगषाला सारा समाज है जिसमें मैं लगातार परीक्षण करता रहता हूँ और देखता परखता रहता हूँ कौन सा मुद्दा, किस घटना, किस नारे , किस धर्म के क्रियाकलापों में कौन सा नुक्स है बस जैसे ही नुक्स का पता या यो कहूँ नुक्स की शक्ल देने लायक गुंजाइष दिखती है मैं अपने पड़े पेल देता हूँ। इससे भय उत्पन्न होता है समाज में कद बढ़ता है ओर डॉनत्व की प्राप्ति होती है। जबसे अमिताभ बच्चन ने डॉन फिल्म में काम किया तबसे रसातलगामी कार्य महिमामंडित हो गए हैं। डॉन रूपी व्यक्तित्व अपने आपको अपराधी समझने के बदले अमिताभ बच्चन समझने लगा है। मेरे हल्लाबोलात्मक क्रियाकलापों से संबंधित व्यक्ति, धर्म, जाति, वर्ग, प्रांत, के लोग इतने खीज जाते हैं कि अपने सजे संवरे सुन्दर बालनोचने लगते है और मेरा काम चल निकलता है। अब समझे आप मेरी इन्हीं गतिविधियों के कारण मेरा नाम बाल नोच रे है। मुझे देखते ही लोगों का ध्यान अनायास ही उनके बालों पर चला जाता है और मैं इस पर विजयी मुस्कान बिखेर देता हूँ।

मैंने निष्चय किया है कि मैं बाल नोचने की सत्ता उसको एक पंथ के रूप में स्थापित करवा कर रहूँगा। जैसे महावीर स्वामी बुध्द क्रमश:, जैन व बौध्द धर्म के प्रवर्तक बने उसी तरह मैं भी बाल नोच पंथ का प्रवर्तक बनूँगा। मेरे पास भी तो मेरे अनुयायीयों की फौज है। साठ के दशक में हरिशंकर परसाँई को व्यंग्य को विधा मनवाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था मेरे सामने तो रास्ता साफ है। मेरा संख्याबल मुझे सत्ता सिहांसन का पाँचवां पाया तो बनवाएगा ही, साथ ही सत्ता रिमोट भी मेरे हाथ लग सकता है। इन सब में धन कितना मिलता है। इस बात को मैं अंधेरे में हीं रखूंगा। अब सब बातें तो बताने लायक नहीं होती। आदमी अपने कमजोर पॉइंट्स को लाँकर में रखता है और उसकी चाबी समुद्र में फेंक देता है आखिर इतनी कयामत के बाद पैसा न मिला तो क्या फायदा। यह तो नयी बात हुई रात भर पीसा सुबह चलनी में उठाया। अंत में मैं यही कह सकता हूँ की मेरी भविष्य की सफलताएं के अनुयायीयों के ऊपर निर्भर है।

मेरे उस जीवन का मूलमंत्र या सिध्दांत जो भी चाहे कह लिजिए किसी भी सिध्दांत का न होना है। आदमी को समय देखकर काम करना चाहिए। एकही लकीर को पीटते रहना अकलमंदी नहीं है। मैंने आपको बताया आजकल मेरा जीवन दर्षन (बालनोचना) दूधो नहा रहा है पूतो फल रहा है मेरा यह जीवन दर्षन किसी से प्रभावित होकर अस्तित्व में नहीं आया है। इसे मैंने ही प्रसव किया है। आप पूछ सकते हैं मै पुरूष हूँ मैं कैसे प्रसव कर सकता हूँ तो मेरा जवाब है भाई सिध्दांत तो प्रसव किया जा सकता है इसके लिए स्त्री होना कोई जरूरी नहीं। अब सब मुझे सलाम करते हैं। इससे मेरा अहं और खोखलापन फले न समाये। मैं आपको भी आपने बाल नोचने ट्रेनिंग सेंटर में दाखिल होने के लिए दावत देता हूँ। मेरी बात मानिए मैं गारंटी देता हूँ की सफलता आपके आंगन में बकरी बनकर बंधी रहेगी। - Asha Shrivastava

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