Thursday, April 23, 2009

गीत लिखती किसलिए

गीत लिखती किसलिए मैं ।
मनपटल पर भाव आते,
हाथ मेरे रूक न पाते ।
शब्द कागज पर उतरते,
और तभी विश्राम पाते,
पीर मनकी ढालना है, गीत लिखती इसलिए ॥

बात कुछ ऐसी जहाँ की,
कह सपूँ ये कामना है,
जिसकी चर्चा भी किसी से
और कभी करना मना है,
गाँठ मनकी खोलना है गीत लिखती इसलिए ॥

गीत फूलों जैसे महकें,
ओस की ठंडक से सिहरें
बनके बरखा रसभिगोदें
लहर बनके तटको छूले,
प्रकृति के संग झूमना है, गीत लिखती इसलिए ॥

प्रेम की महिमा लिखूँ मैं,
छींट कर खुशबू के छींटे
मधुरिमा इसकी लिखूँ मैं,
प्रेमरस में पागना है गीत लिखती इसलिए ॥

मनके दर्पण क्यों है मैले
क्यों समर्पण भी कसैले,
जिस तरफ नजरें उठाउँ,
इनके घूँघट खोलना है, गीत लिखती इसलिए ॥

व्यस्त मेजों को लिख्रू मैं,
मस्त सेजों को लिखूं मैं,
त्रस्त मानवता लिखूं मैं,
ध्वस्त नैतिकता लिखूँ मैं,
दीप सच के बालना है, गीत लिखती इसलिए ॥

आशा श्रीवास्‍तव

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